जानें वट सावित्री व्रत में महिलाएं क्यों करती हैं बरगद की पूजा, कब से रखा जाता है यह व्रत
बसना/कुदारीबाहरा- आज के दिन पूरे देश मे वट सावित्री का व्रत पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है इसी क्रम में ग्राम पंचायत कुदारीबाहरा एवं केरामुण्डा के महिलायों से अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा एवं सावित्री एवं सत्यवान की कथा सुनी।
बरगद के पेड़ की पूजा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बरगद के पेड़ में हिंदू पौराणिक कथाओं के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश विद्यमान हैं. पेड़ की जड़ें ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं.
वट सावित्री पूजा ज्येष्ठ की अमावस्या के दिन मनाई जाती है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं. ऐसा माना जाता है कि व्रत का पालन करने से महिलाएं अपने पति के लिए सौभाग्य और समृद्धि लाने में सक्षम होती हैं. वट सावित्री पूजा विवाहित महिलाओं द्वारा की जाती है. इसमें महिलाएं वट यानी बरगद की पूजा करती हैं. यह त्योहार ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है. वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का महत्व अतुलनीय है.
बरगद के पेड़ का महत्व
बरगद के पेड़ की पूजा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. धार्मिक आज वट सावित्री पूजा,अखंड सौभाग्य के लिए महिलायों ने किया पूजा अर्चनामान्यताओं के अनुसार, बरगद के पेड़ में हिंदू पौराणिक कथाओं के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश विद्यमान हैं. पेड़ की जड़ें ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं. वट वृक्ष का तना विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है और भगवान शिव बरगद के पेड़ के ऊपरी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र पेड़ के नीचे पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस तरह सावित्री ने अपने समर्पण से अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाई थीं, उसी तरह इस शुभ व्रत को रखने वाली विवाहित महिलाओं को एक सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
कैसे होती है पूजा
इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद, विवाहित महिलाएं दुल्हन के रूप में तैयार होती हैं, अपने माथे पर सिंदूर लगाती हैं. इसके बाद वट वृक्ष या बरगद के पेड़ को चावल और फूल अर्पित करती हैं और अपने ईच्छानुसार 7 या 21 प्रकार के फल का भोग लगाती है इसके बाद पेड़ के तने के चारों ओर पीले या लाल रंग के धागे बांधते हैं, उस पर सिंदूर या सिंदूर छिड़कते हैं और प्रार्थना करते हुए पेड़ की परिक्रमा करती हैं. देवी सावित्री की भी पूजा की जाती है. इसके बाद महिलाएं भोग लगाकर अपने व्रत का पारायण करती हैं.